नज़राना इश्क़ का (भाग : 07)
निमय गेट खोलता हुआ तेजी से स्टोर रूम की ओर बढ़ा और विकेट स्टिक अंदर फेंककर बालकनी की ओर बढ़ चला, जहां जाह्नवी और मिसेज शर्मा बैठी हुई थी। जाह्नवी के चेहरे को देखकर लग रहा था जैसे उसने बस अभी अभी रोना बंद किया, उसकी आंखे सूजकर लाल हो चुकी थी, मिसेज शर्मा भी थकी हारी सी बैठी हुई थी। निमय दहकती आंखों से जाह्नवी को घूरते हुए उसके पास पहुंच गया।
"बस इतनी हिम्मत है तुझ में? कल को सड़क पर कुत्ते बिल्लियों को गुजरते देखकर डर जाना, और दुबककर घर में छिप जाना!" निमय ने उसकी आंखो में आंखें डालकर गुस्से से बरसते हुए कहा, उसके लहज़े में अंगार बरस रहा था।
"निमय! ये अभी अभी रोकर चुप हुई है, प्लीज कुछ मत बोल..!" मिसेज शर्मा ने निमय को रोकते हुए कहा।
"नहीं मम्मा! ये मुझसे तो लड़ सकती है पर उन सड़कछाप टटपुंजियो से नहीं..!" मिसेज शर्मा को जवाब देते हुए निमय जाह्नवी की ओर पलटा। "क्या है बे तू? बस इतनी हिम्मत है तुझमें? या फिर तुझे सेकंड रैंक आई इसलिए बहाना ढूंढकर रोना था?" निमय के मुंह से अंगार बरसते रहे, अब जाह्नवी से ये सब सहन कर पाना पॉसिबल नहीं था।
"भाई प्लीज..!" जाह्नवी सिर झुकाए हुए बोली, उसके स्वर में छिपे दर्द से जान पड़ता था मानो वो बस अभी रो देगी।
"क्या भाई हां? हर दिन भाई बचाने आएगा तुझे?
इसका मतलब कि अगर मैं तुझे न जीतने दूं तो हर दिन मुझसे मार खाती रहेगी? और तेरे दुलारे मम्मी पापा को तो बस लड़की चाहिए थी, मैं तो गलती से पैदा हो गया, तो क्या करूं? हर बार, हर कहीं तुझे बचाने के लिए तेरा भाई तेरे साथ होगा क्या?" निमय की आंखो में आंसू भर आए।
"भाई प्लीज न! जाने दे…!" जाह्नवी सिर झुकाए बैठी रही, अब उसकी आंखे, आंसुओ को रोक पाने में बुरी तरह असफल हो चुकी थीं, जितनी तकलीफ उसे उन गुंडों के छेड़ने से नहीं हुई थी उससे कहीं ज्यादा तकलीफ निमय के डांटने से हो रही थी।
"तुझे तकलीफ हो रही है ना? हां तू लड़की है तो रो के तकलीफ मिटा ले, और आता भी क्या है तुझे… पढ़ना मुझसे लड़ना और रोना! तुम तो बस इतने में ही एक्सपर्ट हो। जीने के लिए बस यही जरूरी नहीं है, रो देने भर से कुछ नहीं होता, अगर तू मुझे सच में हरा दे तो जानूं।" निमय उसे रोते देख व्यंग्यपूर्ण लहज़े में बोला।
"हर प्रॉब्लम का सोल्यूशन बस रोना नहीं है, बोल जीत सकती है क्या मुझसे रियल फाइट में..!" निमय ने उसकी ठुड्ढी पकड़कर चेहरा उठाते हुए आंखो में आंखें डालकर बोला। "मुझसे लड़ने की तो शौकीन है ना, बोल लड़ पाएगी क्या? जीत पाएगी क्या? या आज तेरा आत्मविश्वास किसी कुत्ते के गले की पट्टी बनकर उसके साथ घूमने निकल गया है।" निमय के स्वर में ललकार और आक्रोश दोनो था, वह बिना इसकी परवाह किए कि जाह्नवी को कैसा लगेगा बस व्यंग्यपूर्ण लहज़े में चुनौती दिए जा रहा था, यह देखकर मिसेज शर्मा बेहद हैरान थी, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़के को हुआ क्या..!
"बोल….! या आज से तुझे भी बस बिल्ली की तरह म्याऊं म्याऊं करना है, देख कहीं चूहा देखकर बेहोश मत हो जाना…!" निमय गुस्से की अधिकता में भी मुंह बिचकाते हुए बोला।
"मैं करूंगी..!" जाह्नवी के मुख से बस यही दो बोल फूटे।
"क्या करेगी?" निमय ने उसकी आंखों में झांका।
"मैं तुझे रियल फाइट में हरा कर दिखाऊंगी, अपने दम पर…!" जाह्नवी ने खड़े हुए होते कहा, निमय के चेहरे पर की मुस्कान फैल गई, मानो उसने मन मांगी चीज हासिल कर ली हो।
"ठीक है, कल से प्रैक्टिस के लिए तैयार रहना गधी..!" निमय ने हंसते हुए कहा, उसका गुस्सा साबुन के झाग की तरह गायब हो चुका था। "और हां देखना चूहे से मत डरना..!" कहते हुए वह अपने कमरे की ओर भागा।
"तुझे तो देख लूंगी घोंचू..!" रोकर थक जाने के बाद भी जाह्नवी के मुख से हंसी निकल गई।
'ऊपरवाले तेरा लाख लाख शुक्र है। इसी तरह मेरे बच्चों पर अपनी मेहर बनाए रख! एक पल को तो मेरा जी डर गया था कि आज मेरे बच्चों को क्या हो रहा है, मगर तेरी कृपा से सब ठीक हो गया। अब वो पहले की तरह हँसने बोलने लगे।' मिसेज शर्मा ने हाथ जोड़कर मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए कहा।
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शाम हो चुकी थी, फरी अपनी टेरेस पर खड़ी सूरज को बादलों की ओट में छिपते देख रही थी। उसके हाथ में उसकी वहीं डायरी थी, दूसरे हाथ में कलम और टेबल पर कुछ किताबें और चश्मा पड़ा हुआ था। सूरज को डूबना था, डूब गया। थोड़ी देर इधर उधर टहलने के बाद फरी जाकर अपनी टेबल पर बैठ गई, और पेन की कैप खोलकर, उसे पेन के बैक में लगाकर उंगलियों में नचाने लगीं। फिर आंखो पर चश्मा लगाते हुए उसने डायरी के पन्ने पलटने शुरू किए, इसी बीच कई बार पेन की कैप को चबाने की गलती कर चुकी थी, मगर जैसे ही उसे इसका एहसास होता वह झट से उसे बाहर खींच लेती। आज वह सोच में डूबी हुई सी लग रही थी, उसके चेहरे पर बेचैनी की रेखाऐं स्पष्टतया नज़र आ हिंद थीं। ऐसा लग रहा था मानो उसके मन में कुछ उमड़ घुमड़कर आ जा रहा था जो उसे बेहद परेशान कर रहा था फिर भी वह स्वयं को सामान्य रखने की लगातार कोशिशें कर रही थी। उसने डायरी लिखना शुरू किया।
"हे डायरी! गुड इवनिंग!!
वैसे तो मैं रोज ही अपने मन में जो आता है तुमसे कहती रहती हूं, मगर आज बहुत कुछ कहना है। तुम्हें पता है मैंने कॉलेज में फर्स्ट रैंक अचीव किया, मगर मुझे इसकी कोई खुशी नहीं है, क्योंकि मेरे पास कोई नहीं है जिससे मैं अपनी खुशी बांट सकूं। मेरे बाबा तो हैं मगर वो बिना अपने बड़े साहब के इजाजत के कुछ भी नहीं कर सकते। पता है सभी ऐसे कांग्रेट्स कर रहे थे मानो मैं नहीं बल्कि उन्होंने टॉप किया हो! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये लोग चाहते क्या है।
मगर पूरी क्लास में से दो तीन लोग अपनी सीट से भी नहीं उठे, वो लड़की जाह्नवी शायद उसे दुख हुआ कि उसका एक मार्क कट गया, मैं उसे समझाना चाहती थी पर इसको वो पता नहीं किस तरह से लेती इसलिए मैंने उससे कुछ नहीं कहा, पर सोचा कुछ बोल दूं.. मगर वो तो बात तक भी नहीं करती मुझसे, नजरे फिराकर रहती है। तुम ही बताओ मैं किसी को कैसे हर्ट कर सकती हूं, मुझे तो मां ने सिखाया है ना कि कभी किसी को तकलीफ मत देना।
और उसका भाई, वो पता नहीं कितना अजीब इंसान है, उससे तो कोई बात भी ना करना चाहें, मतलब इतना खड़ूस कौन होता है, जब देखो अपनी बहन को सताते रहता है, पर उसकी बहन भी उससे कम नहीं है। खैर जाने दो ये उनका अपना मैटर है मेरा क्या जाता है, बस मुझे एक चीज समझ न आती कि सब मुझसे क्यों चिपकने लगते हैं, मुझमें ऐसा क्या है जो उन दोनो की बुराई करते रहते हैं, माना कि दोनो अपने अलावा किसी और से बात तक नहीं करते पर किसी के साथ कुछ गलत भी तो नहीं किया।
शायद लोग मेरे कंधे पर बंदूक रखकर चलाना चाहते हैं, यही वजह हो सकती है उनका मुझसे इस तरह ट्रीट करने की!
पता नहीं क्यूं लोग अवसर देखते ही रंग बदल लेते हैं, इनको देखकर तो बिचारा गिरगिट भी शर्म के मारे डूबकर मर जायेगा। कल को शायद कोई और आ जायेगा तो मेरी भी बुराई करते फिरेंगे, वैसे भी मुझे मेरी बुराई भलाई से मतलब ही क्या है..! मगर फिर भी इन सबसे अच्छे वही दोनो भाई बहन हैं, भले कैसे भी हो मगर मौसमी रंग तो नहीं बदलते..!!
'क्या गिरगिट रंग बदले यहां,
खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है
इतने बदलते रहते हैं लोग यहां,
यहां तो हर दूजा रंग बदलता है।
पता नहीं क्या क्या बोले जा रही डायरी, पर सच ये है कि मुझे मां की बहुत याद आ रही है, इसलिए दिमाग काम नहीं कर रहा, ना चाहते हुए भी उन दोनो का ख्याल दिमाग में घर कर चुका है, आई होप की जल्दी सब ठीक हो जायेगा, अब मैं नीचे जाकर पढ़ाई कर लूं!
गुड नाईट डायरी..!!"
इतना लिखने के बाद फरी कुर्सी से उठकर खड़ी हुई और सबकुछ समेटते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
◆◆◆◆◆
रात में
जाह्नवी के मन में भी हलचल मची हुई थी, वह अपने साथ हुए हादसे का जिम्मेदार फरी को मानकर कोसे जा रही थी। क्योंकि उसी की वजह से आज वह समय से पहले कॉलेज से निकल गई और फिर ये सब हो गया। उसका मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था, ऊपर से निमय का गुस्सा और धमकी उसके मन को कचोट रही थी। वह साधारण कुर्सी पर बैठी हाथ में पकड़ी हुई किताब के पन्ने लगातार बदलती जा रही थी। आज उसने कुछ खाया भी ना था, हालांकि अब उसका चेहरा सामान्य हो चुका था, मगर निमय का गुस्सा उसके दिमाग में घूम रहा था। अब उसने इरादा कर लिया था फर्स्ट आने और निमय को रियल फाइट में हराने का, ऐसे ही सोचते सोचते उसे कब नींद आ गई इसकी खबर भी ना रही, वह कुर्सी पर बैठे बैठे ही टेबल पर सिर रखकर सो गई। निमय उसके मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुराया और गोद में उठाते हुए उसके बिस्तर पर लेटा दिया और उसके माथे को सहलाने लगा।
"तुझे रुलाने और हंसाने का हक सिर्फ मेरा है जानी! अगर कोई और तेरे आंखों में आंसू लायेगा तो वो मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा, तू स्ट्रॉन्ग है, बहुत स्ट्रॉन्ग है पर तेरी आंखो में आंसू देखकर मेरा दिल रो पड़ता है मैं क्या करूं? मैंने बहुत गुस्सा किया न! आई एम सॉरी! रियली सॉरी पर तुझे स्ट्रॉन्ग बनना ही होगा, ताकि कभी कोई तुझे छूने की हिम्मत न करे!" जाह्नवी के माथे को सहलाते हुए निमय धीरे धीरे बुदबुदा रहा था। काफी देर तक वह जाह्नवी को सोते हुए देखता रहा फिर उसे चादर ओढ़ा कर खुद पढ़ने बैठ गया।
क्रमश:......
shweta soni
29-Jul-2022 11:35 PM
Nice 👍
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🤫
26-Feb-2022 02:30 PM
बिल्कुल कभी कभी कड़वाहट भी टॉनिक का काम कर जाती है। बहुत खूब कहानी
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मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:27 PM
Thank you so much ❤️
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अफसाना
20-Feb-2022 04:13 PM
गुड स्टोरी
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मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:27 PM
Thank you
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